सिंदबाद , मैजिकल लाइफ
मैंने चारों तरफ देखा तो वह चौराहा शहर का सबसे भीड़भाड़ वाला चौराहा था। चारों तरफ रोजाना काम में आने वाली चीजों की दुकानें लगी थी। कपड़ों की, इत्र की, जेवरों की और ना जाने किन-किन चीजों की बिक्री उस बाजार में हो रही थी। चारों तरफ नजर घुमाने के बाद भी मौलाना साहब मुझे नजर नहीं आ रहे थे। थोड़ी देर के बाद एक उम्र दराज बुजुर्ग वहां सामने से धीरे-धीरे चल कर चले आ रहे थे। उनके पास एक पोटली थी.. जिसमें शायद उन्होंने सौदा खरीदने के लिए कुछ रकम रखी थी। धीरे-धीरे वह चलकर एक राशन की दुकान की तरफ जा रहे थे। अचानक से सामने से कुछ जवान लड़के दौड़ते हुए आए और बुजुर्ग मोहतरम को एक धक्का मार दिया। जिसके कारण वह बुजुर्ग संभल नहीं पाए और गिर पड़े। जब वह गिर पड़े तो उन से टकराने वाले लड़के उल्टा उन्हीं के ऊपर चिल्लाने लगे थे। एक ने कहा, "ए बूढ़े..!! तू देख के नहीं चल सकता। तूने हमारे कीमती कपड़े बर्बाद कर दिए हैं। तुझे इनकी कीमत अदा करनी ही होगी।" दूसरे लड़के ने उन बुजुर्ग को उनके गिरेबान पकड़ कर उठाया और अपने एक दोस्त की तरफ इशारा करके कहने लगा, "बड़े मियां..!! आपने धक्का देकर मेरे दोस्त को गिरा दिया और उसको जोरदार चोट लगी है। उसके पूरे शरीर पर जख्म हो गए हैं।" "लाइए पोटली दीजिए.. आप की पोटली.. ताकि हम हमारे नुकसान की भरपाई कर पाए। उन लोगों ने डरा धमका कर उस बुजुर्ग आदमी की पोटली छीन ली और चलते बने वह बुजुर्ग आदमी वही चौराहे पर बैठा बैठा अपनी किस्मत को कोसने लगा था। रोते-रोते वह लगातार बोले जा रहा था, "या खुदा.. या मेरे परवरदिगार..!! तूने मेरे किस गुनाह की सजा मुझे दी है। बड़ी ही मुश्किल से मुझे यह थोड़ी सी रकम है जो खैरात मैं मिली थी। जिससे मैं अपने भूखे बच्चों का पेट भर सकता था। पर वह भी यह लड़के मुझसे छीन कर ले गए। अब मैं किस मुंह को लेकर अपने घर जाऊंगा। बच्चे बेचारे दाने-दाने को तरस रहे हैं।" ऐसा कहकर वह बुजुर्ग आदमी वही चौराहे पर बैठकर दहाड़े मार-मार कर रोने लगा। आसपास के लोग उसे देख रहे थे और बातें करते हुए मुंह घुमा कर निकल जा रहे थे। उस बूढ़े को देखते ही सिंदबाद के मन में ख्याल आया, "हो ना हो.. यह बुजुर्ग.. मौलाना साहब ही हैं। इन्होंने शायद मेरी आजमाइश के लिए ही यह सब नाटक किया है।" ऐसा ख्याल आते ही सिंदबाद ने उस बुजुर्ग आदमी की तरफ दौड़ लगा दी। और वहां जाकर उन्हें उठाया.. उनके कपड़े झाड़े और एक तरफ ले जाकर बिठा दिया। सिंदबाद ने उन्हें अपने कमर में खोसीं हुई मशक से पानी पिलाया और उन्हें दिलासा देते हुए कहा, "बाबा..!! आप चिंता ना करें। यह आपका बेटा.. आपके लिए कुछ ना कुछ जरूर करेगा। आप आप बिल्कुल भी चिंता मत कीजिए।" ऐसा कहकर सिंदबाद ने अपने कमर में खुशी हुई एक पोटली निकाली और बुजुर्ग आदमी के सुपुर्द दी। कहा, "बाबा मेरे पास यही रकम अभी है। इसलिए आप यह रखिए और अपने बच्चों के लिए कुछ खाने पीने की चीजों का इंतजाम कीजिए। मैं जल्दी ही आपके परिवार से मिलने आऊंगा। मैं दुआ करूंगा कि पाक परवरदिगार आपका जितना भी नुकसान हुआ है.. उसे कम करने की कोशिश करे।" उस आदमी ने वह पोटली ली और धीरे धीरे अपने रास्ते चला गया। सिंदबाद भी यह सब देख कर खुश हो गया। उसे पक्का यकीन था.. यह बुजुर्ग आदमी उसके उस्ताद मौलाना मदनी साहब ही थे। वो खुशी खुशी वापस चला गया। सिंदबाद के वापस जाने के बाद वो बुजुर्ग मुस्कराता हुआ.. गली से बाहर निकला। उसने सिंदबाद के जाने वाली तरफ देखा और धीरे-धीरे अपनी राह चल पड़ा। मौलाना साहब ने सिंदबाद को अपने पास बुलाया और उसकी पीठ थपथपाते हुए उसे उसके किए की मुबारकबाद दी। सिंदबाद से खुश होकर कहा, "सिंदबाद..!! तुम मेरे अब तक के सबसे पसंदीदा शागिर्द रहे हो। तुम्हारे ईमान और दीन की तालीम पूरी हुई। अब तुम अपने परिवार के साथ अपने घर में रह सकते हो। बस मैं तुमसे यही चाहता हूं कि तुम सच्चाई और ईमानदारी के नेक रास्ते पर आगे बढ़ कर बहुत नाम कमाओ।" ऐसा कह कर मौलाना साहब ने सिंदबाद को अपने कलेजे से लगा लिया.. और उसे उसके घर जाने के लिए रुखसत किया। अब जल्दी ही सिंदबाद अपने घर पहुंच गया। वहां पर उसकी अम्मी अपने काम में मशरूफ थी। सिंदबाद के अब्बा शहरयार साहब अपने शहर के काफी जाने-माने और अमीर आदमी थे। उनकी कोठी भी काफी लंबी चौड़ी और खूबसूरत थी। नक्काशीदार दरवाजे, मेहराबदार छत और छत भी इतनी ऊंची कि अगर गर्दन ऊपर कर देखा जाए तो सर की पगड़ी नीचे गिर पड़े। सिंदबाद को यही तो चाहिए था ऐसी ऐश की जिंदगी और काम ना करना। उसके अब्बा ने बहुत ही ज्यादा मिल्कियत इकट्ठी की हुई थी। जब सिंदबाद घर पहुंचा तो उसकी मां उसे देख कर बहुत ही ज्यादा खुश हुई और दौड़ती हुई उसके पास आ गई। पास आकर सिंदबाद को गले से लगा लिया और उसका माथा चूम लिया। साथ ही बहुत सी दुआएं देने लगी। खुशी से वह फूली नहीं समा रही थी। उन की आंखों से आंसुओं का सैलाब बह रहा था। वह इतनी ज्यादा जज्बाती हो गई थी कि उन्हें अपना होश ही नहीं रहा। सिंदबाद भी अपनी मां को देखकर बहुत ही ज्यादा खुश था। उसकी मां सारी मांओ जैसी ही थी। शायद उससे भी ज्यादा खूबसूरत.. वैसे इस पूरी दुनिया में मां के लिए सबसे खूबसूरत उसका बच्चा ही होता है और बच्चे के लिए दुनिया की सबसे खूबसूरत पहली औरत उसकी मां ही होती है। सिंदबाद भी अपनी मां को दुनिया की सबसे खूबसूरत औरत समझता था। उसने ने अपनी मां के हाथों को चूम कर सजदा किया और खुशी खुशी उनके साथ अंदर चला गया। मां ने भी सिंदबाद के आने की खुशी में ढेरों पकवान अपने हाथों से बनाए। वैसे तो उनके घर में ढेरों नौकर उनकी खिदमत करने के लिए थे। पर मां तो आखिर मां ही होती है और जब बच्चा इतने दिनों के बाद वापस आए.. तो उसे नौकरों के हाथ का बनाया हुआ खाना कैसे खिला सकती थी। वह सिंदबाद के पास ही बैठकर अपने हाथों से सिंदबाद को खाना खिला रही थी और दूसरे हाथ से उसे पंखे से हवा करती जा रही थी। सिंदबाद को खाना खाते देख कर ही उनका मन और आत्मा दोनों ही भर गए थे। थोड़ी ही देर में सिंदबाद के अब्बा हुजूर अपने काम से वापस लौटे.. उन्होंने देखा सिंदबाद वापस आ गया था तो उन्हें भी बहुत ही खुशी हुई। इसी खुशी की वजह से वह दौड़ते हुए सिंदबाद के पास आ गए। सिंदबाद ने जब अपने अब्बू को देखा तो वो भी जाकर उनके गले लग गया और गले लग कर वह दोनों बहुत ही खुश हो गए। सिंदबाद के अब्बू ने भी उसे ढेरों दुआएं दी और सिंदबाद ने भी उनके हाथों को चूम कर उनकी दुआएं ली और पास ही रखें कुर्सी पर उन्हें बिठाया। दोनों बाप बेटे वहीं बैठ कर बातें करने लगे। सिंदबाद की अम्मी भी उन दोनों को एक साथ खुशी खुशी वक्त गुजारते देखकर बहुत ही ज्यादा जज्बाती हो रही थी। उनके जज्बात आंखों के रास्ते आंसुओं की शक्ल में बाहर आ रहे थे। खुशी संभाले नहीं संभल रही थी।
Anjali korde
10-Aug-2023 11:08 AM
Nice part
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RISHITA
06-Aug-2023 09:56 AM
Very nice
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Babita patel
04-Aug-2023 05:54 PM
Nice
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